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परंतु जब भारतीय पुरातात्विक विभाग ने इस घाटी की खुदाई की थी तब उन्हें दो पुराने शहर के बारे में पता चला था। मोहनजोदाड़ो हड़प्पा

भारतीय विश्वविद्यालयों के इतिहास के विद्यार्थियों के लिये स्नातक उपाधि पाठ्यक्रम पर आधारित पुस्तक

अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना मार्गरेट कजिन्स ने की थी

पश्चिमी चालुक्य – प्रतीच्य चालुक्य पश्चिमी भारत का राजवंश था जिसने २१६ वर्ष राज किया।

चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा गुप्त युग की शुरुआत

 – गत हड़प्पा संस्कृति (१७००–१३०० ई.पू.)

नन्द-मौर्य युगीन भारत (गूगल पुस्तक ; लेखक - नीलकान्त शास्त्री)

समान्यत विद्वान भारतीय इतिहास को एक संपन्न पर अर्धलिखित इतिहास बताते हैं पर भारतीय इतिहास के कई स्रोत है। सिंधु घाटी की लिपि, अशोक के शिलालेख, हेरोडोटस, फ़ा हियान, ह्वेन सांग, संगम साहित्य, मार्कोपोलो, संस्कृत लेखकों आदि से प्राचीन भारत का इतिहास प्राप्त होता है। मध्यकाल में अल-बेरुनी और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजाओं की जीवनी भी महत्वपूर्ण है। बाबरनामा, आईन-ए-अकबरी आदि जीवनियां हमें उत्तर मध्यकाल के बारे में बताती हैं। प्रागैतिहासिक काल (३३०० ईसा पूर्व तक)

"मध्यकालीन भारत का इतिहास" श्रेणी में पृष्ठ

check here जलालुद्दीन खिलजी द्वारा खिलजी वंश की स्थापना

लेकिन बंबई के ब्रिटिश प्रतिष्ठान ने इस संधि का उल्लंघन किया और रघुनाथराव को ढाल दिया।

पतंजलि का ‘महाभाष्य’ और कालीदासकृत ‘मालविकाग्निमित्र’ शुंगकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोत हैं। मालविकाग्निमित्र में कालिदास ने पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र तथा विदर्भराज की राजकुमारी मालविका की प्रेमकथा का उल्लेख किया है। ज्योतिष ग्रंथ ‘गार्गी संहिता’ में यवनों के आक्रमण का उल्लेख है। कालीदास के ‘रघुवंश’ में संभवतः समुद्रगुप्त के विजय-अभियानों का वर्णन है। सोमदेव के ‘कथासरित्सागर’ और क्षेमेंद्र के ‘बृहत्कथामंजरी’ में राजा विक्रमादित्य की कुछ परंपराओं का उल्लेख है। शूद्रक के ‘मृच्छकटिक’ नाटक और दंडी के ‘दशकुमार चरित’ में भी तत्कालीन समाज का चित्रण मिलता है।

प्राचीन भारत का इतिहास प्राचीन भारत बहुविकल्पीय प्रश्न

इन अभिलेखों के द्वारा तत्त्कालीन राजाओं की वंशावलियों और विजयों का ज्ञान होता है। रुद्रदामन् के गिरनार-अभिलेख में उसके साथ उसके दादा चष्टन् तथा पिता जयदामन् के नामों की भी जानकारी मिलती है। समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशस्ति में उसके विजय-अभियान का वर्णन है। यौधेय, कुणिंद, आर्जुनायन तथा मालव संघ के शासकों के सिक्कों पर ‘गण’ या ‘संघ’ शब्द स्पष्ट रूप से खुदा है, जिससे स्पष्ट है कि उस समय गणराज्यों का अस्तित्व बना हुआ था। मौर्य तथा गुप्त-सम्राटों के अभिलेखों से राजतंत्रा प्रणाली की शासन पद्धति के संबंध में ज्ञात होता है और पता चलता है कि साम्राज्य कई प्रांतों में बँटा होता था, जिसको ‘भुक्ति’ कहते थे।

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